Skip to main content

ऑयस्टर मशरुम - कम लागत से शुरू करे व्यापार।

उत्तम शाकाहारी भोजन में मशरुम का विशेष महत्व है,यह पोषक तत्वों के साथ साथ स्वाद में भी अतुलनीय है। यह फफूंद हमारे आस-पास कई रूप में दिख जाते है,पर हम कुछ गिने चुने को ही ग्रहण करते है। एक हिसाब से हम इसे" मशरुम एक फफूंदी पौधा है जो अपना भोजन अन्य पदार्थो से ग्रहण कर अपना विकाश करता है" के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। मुख्यतः मशरुम व्यसायिक रूप मे 3 प्रकार होते हैं।

1. ऑयस्टर मशरूम



2. मिल्की एवम पैरा मशरुम



3. बटन मशरूम



                            आज हम ऑयस्टर मशरुम की खेती के बारे में जानेंगे , क्योकि यह मशरूम उगाने में बहुत ही सरल एवं कम समय एवं कम लागत मे उत्पादित होता है।

ऑयस्टर मशरूम

समान्य नाम - ढींगरी मशरूम
वैज्ञानिक नाम - फ्लूयुरोटस ओएस्ट्रीएटस
कुल - फ्लूयुरोटेसी
           भारत मे यह प्रजाति में लगभग 12 किस्मों को उगाया जाता है,जिसमे 3  मुख्य प्रकार कुछ इस तरह है

1. फ्लोरिडा - 👇

                        यह ऑयस्टर मशरूम आकार में बड़े एवं कम दिनों में प्राप्त हो जाता है। इसकी विशेषता ये है कि तापमान कुछ अधिक होने पर भी यह आसानी से विकाश कर लेता है।


2. सेज़र काजु - 👇

                                 यह ऑयस्टर मशरुम मध्यम आकार एवं कुछ मटमैले रंग के होते है।यह कम तापमान में अच्छा विकाश करता है। इसका स्वाद अच्छा होता है।


3. गुलाबी ऑयस्टर - 👇

                                  यह गुलाबी रंग के सुंदर दिखते हैं। इसका आकार सामान्य होता है एवं यह भी कम ताप
में विकाश करता है।


उपयुक्त समय एवम तापमान 👇

                          ऑयस्टर मशरुम की खेती तापमान कम और आद्रता 80-85% होने पर किया जाता है। इसकी खेती के लिए सितंबर से जनवरी महीना उपयुक्त होता है और तापमान 20 - 28 सेंटीग्रेड होना चाहिए।

ऑयस्टर में उपलब्ध पोषक तत्व - 👇

                                 इसमें राइबोफ्लेविन, पोटेशियम, विटामिन बी 6, फोलिक एसिड (फोलेट), मैगनीशियम, विटामिन सी, पैंटोथैनिक एसिड और अमीनो एसिड मौजूद होते हैं।
                                     इसके साथ साथ यह विटामिन D देने वाला होता है, जिससे शरीर की हड्डियां मजबूत होती है।

ऑयस्टर मशरूम की खेती - 👇

                          इस मशरुम का प्रयोग सबसे पहले जर्मनी में किया गया था विश्व युद्ध के समय फिर इसकी गुणवत्ता देखकर इसका खेती किये जाने लगे ।

खेती के लिए आवश्यक सामग्रियां - 👇

1. ड्रम 200 लीटर नाप का



2. धान/गेंहू का 3-4cm कटा हुआ भूसा - 10kg



3.  स्पान (मशरूम बीज) - 1kg



4.  पॉलीथीन बैग 5kg धारण क्षमता का - 10 नग



5.  फॉर्मेलिन रसायन (किट नाशक) - 125ml



6.  बाविस्टिन पावडर (फफूंद नाशक) - 7gm



7.  प्लास्टिक रस्सी 

     

विधि - 👇

👉  सर्व प्रथम 200 लीटर वाले ड्रम में 100 लीटर पानी भर लेते है ।
👉 फिर फॉर्मेलिन 125 ml और बाविस्टिन 7 gm को
ड्रम में डालकर अच्छे से डंडे की सहायता से मिलाते हैं।
👉 10 kg पैरा भूसा/गेंहू भूसा को डालकर हाथो की सहायता से डूबा देते हैं और ढक्कन लगाकर 16 घंटो के लिए छोड़ देते हैं।
👉     16 घंटे के बाद भूसा को निकालकर ढलाव वाली जमीन में चटाई के ऊपर छांव सुखा देते है ताकी अधिक
पानी बाहर निकल जाये और नमी 30% रह जाये।
👉 नमी की प्रतिशत जानने के लिए भूसा को पकड़कर मुट्ठी में दबाये यदि भूसा से पानी ना निकले पर हथेली गीला  हो तो भुसा बैग में भरने योग्य हो गया है।


👉बैग भरने के लिए सबसे पहले बैग में 4 - 6इंच भुसा भर ले फिर उसे उल्टे पंजे से कसकर दबाये सभी तरफ फिर स्पान को चारों ओर किनारे पर छोड़ दे फिर पुनः  4-6 इंच भुसा भरकर उल्टे पन्जे से सभी तरफ दबाये और चारो ओर कीनारे पर बिजाई करें।यह क्रिया 5-6 बार दोहराये जब तक बैग 75% भर ना जायें।
👉 जब बैग 75% भर जाता है तब बैग के मुंह को रबर या रस्सी से बांध देवें,और बैग के चारो ओर कुछ छेद कर
देवें ताकी अतिरिक्त जल बाहर हो जाएं।
👉 अब प्लास्टिक की रस्सी से सिकाई का निर्माण कर ले और सिकाई में मशरूम बैग को लटका दें।
👉 मशरूम बैग को स्वच्छ एवं अंधेरे युक्त कमरे में ही लटकाना चाहिए,इसकी खेती में स्वच्छकता का विशेष ध्यान रखना होता है।
👉 लगभग 20 दिन में माईसेलियम पूरी तरह फैल जाता है और लगभग 25 दिन में हमे पहला फसल प्राप्त हो जाता है।
👉 फसल की तोड़ाई के लिए मशरूम को पकड़कर घड़ी की उल्टी दिशा में घुमाये ताकी बैग को कोई नुकसान ना हो,तुड़ाई के बाद प्लास्टिक बैग को ब्लेड की
सहायता से फाड़कर अलग कर दे।
👉 प्लास्टिक अलग होने के बाद सिंचाई की रोज़ अवश्यकता होती है सामान्य मौशम में प्रतिदिन 2 बार और गर्मी अधिक होने पर प्रति दिन 3-5बार सिंचाई जरूरी है।
👉 फसल पहली तुड़ाई से 20 से 25 दिन तक प्राप्त कर सकते है।

कीट एवं बीमारियां 👇

1.काब वेब - 👇

यह बीमारी मशरूम पर रुई की तरह जाल बना लेती है जिससे इसमे सड़न वाली बदबू आती है।

रोकथाम - 👇

 इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टिन .5gm प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।

2. भुरा/पिला/काला धब्बा - 👇

यह दिनों रंग के बीमारी एक ही कारक से होता है, जो मशरूम में धब्बे के रूप में दिखाई देते है और मशरूम सड़ा हुआ प्रतीत होता है।

रोकथाम- 👇

इसकी रोकथाम के लिए 100 ppm स्ट्रेप्टो सायकलिन का छिड़काव करें।

3. सेसिड मक्खी - 👇

यह मक्खियाँ बहुत सूक्ष्म होती है, इन्हें इनके छोटे लार्वो की सहायता से पाचाना जा सकता है, जो पदरहित व सफेद और नारंगी रंग के होते हैं| इनका सिर स्पष्ट नहीं होता, यद्यपि इनके सिर के स्थान पर दो बिन्दु मौजूद होते हैं| सेसिड की प्रजनन-क्षमता बहुत तीव्र होती है, जिसके परिणाम स्वरूप यह मशरूम उत्पादन को भारी हानि पहुँचाते हैं| इनके लार्वा, कवक जाल, डंडों के बाहरी भाग को खा जाते हैं|

रोकथाम - 👇

साफ-सफाई- मशरूम की कीट रोकथाम के लिए साफ-सफाई मशरूम (खुम्ब) उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है| इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए, कि उत्पादन कक्ष के आस-पास स्पेन्ट कम्पोस्ट की ढेरी नहीं पड़ी हो, खाद बनाने के प्रांगण में खाद बनाने के 24 घंटे पूर्व 2 प्रतिशत फार्मेलीन का छिड़काव करना चाहिए|

                रोकथाम के लिए फसल में इनका प्रकोप हो तो डाईकलोरोवोस की 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव थैलों, पेटियों, दीवारों और फर्श पर करें|

फोरिड मक्खी - 👇

यह एक छोटी 2.3 मिलीमीटर कूबड़ युक्त पीठ वाली मक्खी है, इनके लार्वो का रंग सफेद होता है तथा यह पदरहित होते हैं, जिनका रंग भूरा-काला होता है| लार्वा के मुडक का सिर नुकीला होता है| ये तेज गति से इधर-उधर भागती है, मादा प्रौढ़ मक्खियाँ बढ़ते हुए मशरूम की गीले सतहों पर अंडे देती है, लार्वा मशरूम के डण्डों पर सुरंग बनाते हैं| खाद में एक मादा लगभग 50 अण्डे देती है|

रोकथाम - 👇 


साफ-सफाई- मशरूम की कीट रोकथाम के लिए साफ-सफाई मशरूम (खुम्ब) उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण अंग है| इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए, कि उत्पादन कक्ष के आस-पास स्पेन्ट कम्पोस्ट की ढेरी नहीं पड़ी हो, खाद बनाने के प्रांगण में खाद बनाने के 24 घंटे पूर्व 2 प्रतिशत फार्मेलीन का छिड़काव करना चाहिए|

व्यय 👇

10kg भुसा - 3*10 -           30₹
1kg स्पान - 1*130 -         130₹
125ml फॉर्मेलिन -               30₹
7gm बाविस्टिन -                  10₹
रस्सी -                                 20₹
10 नग प्लास्टिक बैग - 10*1 -10₹

कुल लागत - 230₹

आय 👇

6kg उत्पादन - 7*150 -         1050₹ 

नोट - स्थान और समय के अनुसार यह राशियां विभिन्न हो सकती है। यह सभी निश्चित मूल्य नही है।


 मित्रों यह जानकारी आपको कैसी लगी कृपया कमेंट करके अवश्य बताएं - हमारा अगला विषय          मिल्की मशरूम के बारे में होगी।🙏🙏🙏







Comments

Popular posts from this blog

छत पर सब्जी उगाये 🍉पैसे बचाये💎

 वर्तमान समय में शरीर में इम्युनिटी बरकार रखने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले सब्जियों का सेवन अति आवश्यक है, परंतु बाजार में लाभ कमाने के कारण सब्जियां सुंदर और स्वस्थ तो दिखती है, पर वास्तव में इसमे वो गुण पाया जाता है? लाभ अधिक लेने के लिए इसमें कई तरह से रासायनिक उर्वरक और किट नाशक का प्रयोग होता है,जो हमे स्वस्थ रखने के बजाय हमारे शरीर मे कई बीमारियों को जन्म देती है ,और हम गैस ,रक्तचाप अनिमियता, हृदय रोग,और मधुमेह आदि से ग्रसित हो जाते है।                                                          इसके अलावा शहरीकरण और जनसंख्या विस्फोट के कारण कृषि योग्य जमीन भी ख़त्म होने के कगार पर है,परन्तु इसका विकल्प है हमारी कि छतें जो खाली पड़ी रहती है,इसका प्रयोग करके जैविक खेती कर सकते हैं।आइये जानते है छत पर खेती कैसे करें? छत में खेती के प्रकार 1.कंक्रीट की क्यारी बनाकर - 👇                     ...

करेले की उन्नत खेती कैसे करे?

 भारत मे करेले की खेती   लम्बे समय से हो रही है।सब्जियों में     इसका महत्व स्वाद के साथ साथ औषधीय में इसका प्रयोग   होता है। मधु मेह रोगियों के लिए इसका सेवन उत्तम माना   जाता है। पोषक गुण   यह खनिज से भरपूर होता है। इसमें पोटेशियम , जिंक ,   मैग्नेशियम , फास्फोरस , कैल्शियम , आयरन , कॉपर ,     मैगनीज  पाए जाते है । विटामिन C , विटामिन A , इसमें   प्रचुरता में होते है। विटामिन B समूह के फोलेट , थायमिन ,   नियासिन , राइबोफ्लेविन , पैण्टोथेनिक एसिड आदि भी इसके   उपयोग से मिलते है। उन्नत किष्मे बाजार में इसकी बहुत से संशोधित और संकर किष्मे उपलब्ध है।  छत्तीशगढ़ में उपलब्ध के नाम कुछ इस तरह से है - पूसा विशेष,अर्का हरित,Bioseed चु चु,पान 1931,Vnr 28no इत्यादि । भूमि का चुनाव   करेले की खेती के लिए विशेषकर बलुई दोमट और मटासी मृदा में सफलता पूर्वक की जा सकती है,इसके लिए आवश्यक को की मृदा भुरभुरी जीवान्स युक्त हो जिससे जल का निकास अच्छी तरह हो। इसके लिए pH मान 6-7के बीच होना ...