Skip to main content

करेले की उन्नत खेती कैसे करे?

 भारत मे करेले की खेती लम्बे समय से हो रही है।सब्जियों में     इसका महत्व स्वाद के साथ साथ औषधीय में इसका प्रयोग   होता है। मधु मेह रोगियों के लिए इसका सेवन उत्तम माना   जाता है।

पोषक गुण

 यह खनिज से भरपूर होता है। इसमें पोटेशियम , जिंक ,   मैग्नेशियम , फास्फोरस , कैल्शियम , आयरन , कॉपर ,     मैगनीज  पाए जाते है । विटामिन C , विटामिन A , इसमें   प्रचुरता में होते है। विटामिन B समूह के फोलेट , थायमिन ,   नियासिन , राइबोफ्लेविन , पैण्टोथेनिक एसिड आदि भी इसके   उपयोग से मिलते है।

उन्नत किष्मे

बाजार में इसकी बहुत से संशोधित और संकर किष्मे उपलब्ध है।  छत्तीशगढ़ में उपलब्ध के नाम कुछ इस तरह से है - पूसा विशेष,अर्का हरित,Bioseed चु चु,पान 1931,Vnr 28no इत्यादि

भूमि का चुनाव

 करेले की खेती के लिए विशेषकर बलुई दोमट और मटासी मृदा में सफलता पूर्वक की जा सकती है,इसके लिए आवश्यक को की मृदा भुरभुरी जीवान्स युक्त हो जिससे जल का निकास अच्छी तरह हो। इसके लिए pH मान 6-7के बीच होना चाहिए।

बुआई का समय

इसकी खेती के लिए जून-जुलाई और जनवरी-फरवरी में की जाती है। बुआई के समय मे ठंड ज्यादा होने पर अंकुरण प्रभवित होता है अतः ठंडी ज्यादा होने पर समय को स्थान्तरित कर सकते है।इस समय इसका तापमान 30 से 35 डिग्री होना चाहिये।

बीज की मात्रा और नर्सरी

प्रति एकड़ के हिसाब से 1-1.5 Kg बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बुआई सीधे जमीन पर या प्रो ट्रे की सहायता से coco pit में कर सकते है। ठंड अधिक होने पर प्रो ट्रे में बुआई करके अस्थाई पारदर्शी प्लास्टिक कक्ष में रखने पर अंकुरण प्रभावित कम होता है,साथ मे 2 100w का बल्ब लगाने पर यह गर्मी अधिक प्रवाहित करता है।

                                            खेत मे पौधों से पौधों की दूरी 60 cm और लाइन से लाइन की दूरी 1.5 से 2 meter रखते हैं।

खेत की तैयारी

खेत मे गहरी जुताई करके 1-2 टन गोबर की खाद मिलाकर क्यारी काट ले ,क्यारी बनाने के लिए रस्सी का प्रयोग करे ताकि क्यारी सीधे सुंदर और निश्चित दूरी में हो । बुआई या रोपाई पूर्व नीम की खली के प्रयोग से किट समस्या कम हो जाती है

उर्वरक की मात्रा

करेले में प्रति एकड़ में नत्रजन 30kg फॉस्फोरस 25kg और पोटास 25kg लगता है नत्रजन को 2-3 भाग विभजित करके डालना चाहिए।

पादप हार्मोन्स का प्रयोग

करेला में फूल आने के समय इथरेल 250 ppm की छिड़काव करने पर मादा पुष्प की मात्रा अधिक होती है जिससे उत्पादन अधिक होता है। 250 ppm अर्थात .5ml/leter पानी मे घोलना होता है।



सिचांई

सिचांई 8 से 10 दिन में करना चाहिए।

सहारा देना(staking)

करेले में सहारा देने आवश्यक क्रिया होता है,जिसके कारण फल की गुणवत्ता अच्छी और बड़े आकार का होता है,जो बाजार में अधिक मूल्य देता है।इसके लिए करेले के पौधों के बीच लगभग 2 meter में बांस(bamboo) को गाड़ देते है जिसमे डंडा की लंबाई 4 feet होना चाहिये फिर उसमें मजबूत रस्सी को जाल नुमा व्यस्थित करते है।

किट एवं बीमारी

1.रैड बीटल - यह पौधों की प्रारंभिक अवस्था मे नुकसान पहुचाता है,यह किट पत्तो को खा जाता है,इसका सुंडी जड़ो को नुकसान पहुचाता है।

रोकथाम - नीम की पत्तियों को उबालकर रस को छान लें और इसका छिड़काव सप्ताह में दो बार करे

2.चूर्णी फफूंद - जैसा की  नाम से स्पस्ट है कि यह फफूंद पावडर के जैसा होता है और पत्तियों के ऊपर फैला रहता है।

रोकथाम - 5 लीटर खट्टी मठा 2 लीटर गौ मूत्र को मिलाकर 10 दिन घड़ा में भरकर रख दे और 40 लीटर पानी मे मिलाकर सप्ताह में एक बार छिड़काव करें कुल 3 बार।

3. एन्थ्रेक् नोज - यह बीमारी केरेल में अधिक नुकसान पहुचाता है,इसके कारण पत्तो में काले धब्बे बन जाते है और प्रकाश संशलेशन  कम हो जाता है।

रोकथाम - 10 लीटर गौ मूत्र में 4kg नीम पत्ते 4kg करन्ज पत्ते को उबालकर छान लें और 40 लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।

पैदावार

प्रति एकड़ में 50 से 60 क्विंटल उत्पादन प्राप्त हो जाते है।



महत्वपूर्ण बातें

1. ड्रिप और मल्चिंग प्रकिया में निराई गुड़ाई की आवश्यकता नही होती है। उत्पादन अधिक प्राप्त होता है,जल की खपत कम होती है।



2. ह्यूमिक एसिड और फोलिक एसिड के प्रयोग से जड़ अधिक वृद्धि करते है उत्पादन अधिक होता है।



3. वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से पौधे स्वस्थ रहते है।




 


Comments

  1. कृपया कमेंट करके बताये किस विषय मे जानकारी चाहते है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

छत पर सब्जी उगाये 🍉पैसे बचाये💎

 वर्तमान समय में शरीर में इम्युनिटी बरकार रखने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले सब्जियों का सेवन अति आवश्यक है, परंतु बाजार में लाभ कमाने के कारण सब्जियां सुंदर और स्वस्थ तो दिखती है, पर वास्तव में इसमे वो गुण पाया जाता है? लाभ अधिक लेने के लिए इसमें कई तरह से रासायनिक उर्वरक और किट नाशक का प्रयोग होता है,जो हमे स्वस्थ रखने के बजाय हमारे शरीर मे कई बीमारियों को जन्म देती है ,और हम गैस ,रक्तचाप अनिमियता, हृदय रोग,और मधुमेह आदि से ग्रसित हो जाते है।                                                          इसके अलावा शहरीकरण और जनसंख्या विस्फोट के कारण कृषि योग्य जमीन भी ख़त्म होने के कगार पर है,परन्तु इसका विकल्प है हमारी कि छतें जो खाली पड़ी रहती है,इसका प्रयोग करके जैविक खेती कर सकते हैं।आइये जानते है छत पर खेती कैसे करें? छत में खेती के प्रकार 1.कंक्रीट की क्यारी बनाकर - 👇                     ...

ऑयस्टर मशरुम - कम लागत से शुरू करे व्यापार।

उत्तम शाकाहारी भोजन में मशरुम का विशेष महत्व है,यह पोषक तत्वों के साथ साथ स्वाद में भी अतुलनीय है। यह फफूंद हमारे आस-पास कई रूप में दिख जाते है,पर हम कुछ गिने चुने को ही ग्रहण करते है। एक हिसाब से हम इसे" मशरुम एक फफूंदी पौधा है जो अपना भोजन अन्य पदार्थो से ग्रहण कर अपना विकाश करता है" के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। मुख्यतः मशरुम व्यसायिक रूप मे 3 प्रकार होते हैं। 1. ऑयस्टर मशरूम 2. मिल्की एवम पैरा मशरुम 3. बटन मशरूम                             आज हम ऑयस्टर मशरुम की खेती के बारे में जानेंगे , क्योकि यह मशरूम उगाने में बहुत ही सरल एवं कम समय एवं कम लागत मे उत्पादित होता है। ऑयस्टर मशरूम समान्य नाम - ढींगरी मशरूम वैज्ञानिक नाम - फ्लूयुरोटस ओएस्ट्रीएटस कुल - फ्लूयुरोटेसी            भारत मे यह प्रजाति में लगभग 12 किस्मों को उगाया जाता है,जिसमे 3  मुख्य प्रकार कुछ इस तरह है 1. फ्लोरिडा - 👇                         यह ऑयस्ट...